Friday, May 22, 2015

शनि की साडेसाती / ढइय्या :

शनि की साडेसाती / ढइय्या :
पाठको पहेले आप साडेसाती या ढइय्या का अर्थ समजे | आपकी जो राशि जो भी है, राशि 12 भाव, 01 भाव, 2 भाव पर जब शनि का गोचर (भ्रमण) होता है उसे साडेसाती कहते है |

उदा. समजो अब शनि का भ्रमण वृश्चिक राशि पर है तो धनु, वृश्चिक, तुला ( 9, 8,7 ) राशि को साडेसाती चल रही है, एक राशि पर शनि ढाई साल भ्रमण करता है यानि साडेसाती साड़ेसात साल चलती है | और राशि से चौथी और अष्ठम राशि पर शनि भ्रमण करता है तो इसे ढइय्या कहते है | जैसे वर्तमान में कुम्भ, मिथुन राशि को ढइय्या चल रही है | ढइय्या भी ढाई साल रहती है 
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साडेसाती/ढइय्या के प्रभाव से मनुष्य का जीवनी में बहोत संघर्षमय होता है | उतार चड़ाव का अनुभव करता है |
साडेसाती के उपाय : इसका सबसे अच्छा उपाय है के अपने दिनचर्या को नियमित करे, जोखिमपूर्ण कामो से बचे | कर्ज न लेवे , स्वाथ्य का विशेष ध्यान रखे | धन सम्बन्धी लेंन देंन बचे | व्यापार में जरुरत पड़ने पर हि पूंजी लगाये| 


भगवान शनि का नित्य आराधना करे , ॐ शं शनिश्चारय नम: जप करे | शनि चालीसा का पाठ करे | शनिवार को शनि भगवान को तेल, तिल, काले उड़द, लोहा ई.से अभिषेक करे, तथा शिव लिंग पर दूध, काले तिल से अभिषेक करे | पीपल के पेड़ के निचे सरसों के तेल का दीपक जलाये | काले कपडे, लोहा, काले छतरी, काला कम्बल का दान की बुजुर्क को करे | बुजुर्क को कभी कष्ट न देवे | वृध्य आश्रम में शनिवार को जाकर उनकी मदत अवश्य करे | यह उपाय करने से साडेसाती के कष्टों से निवारण किया जा सकता है |
वृष, तुला कुम्भ राशि के लोगों पर साडेसाती प्रभाव कम तथा मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक राशि पर साडेसाती का प्रभाव जादा देखा गया है |

आज हम राशि रत्नों पर विचार करते है |

आज हम राशि रत्नों पर विचार करते है |
माणिक : यह रत्न सूर्य होता है, इस रत्न धारण करने से सामाजिक प्रतिष्ठा, उच्च वर्ग, अधिकारी लोगोंसे मान प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, पिता से प्रेम, नौकरी में सफलता का लाभ के योग बनते है |

मोती : यह रत्न चंदमा का होता है, इसे धारण करने से माता का विशेष प्रेम प्राप्त होता है | मन शांत रहता है, क्रोध में कमी, धन वृद्धी में कारक होता है |

मूंगा : यह रत्न मंगल होता है | उस्साह वर्धक, पराक्रम में विशेष वृद्धी, खिलाडीयोंके लिए विशेष लाभ देता है, पुलिस, सेना विभाग में कार्यरत व्यक्तियोंको विशेष लाभदायक होता है | स्वस्थ में रक्त विकार के लिए विशेष लाभ दायक होता है |

पन्ना : यह रत्न बुध का होता है | इसे धारण करने से धन में वृद्धी, व्यापारियों के लिए विशेष लाभ दायक, विद्यार्थियों के लिए एकाग्रता लाता है | नर्वस सिस्टम के कमजोर होने पर लाभ दायक होता है |


पुखराज : यह रत्न गुरु का होता है, इसे धारण करने पर सफलता, ज्ञान में वृद्धी, संपदा, धर्म के कार्यो में रूचि, धन वृद्धी, गुरुओंका विशेष स्नहे प्राप्त होता है, कन्यायों के लिए शादी के योग बनता है, संतान प्राप्ति के लिए विशेष लाभदायक होता है | लीवर संबंधित रोग पर लाभ दायक | 


हिरा : यह रत्ना शुक्र का होता है | इसे धारण (हिरा सदा के लिए) कराने पर पति पत्नी में प्रेम में वृद्धी करता है, प्रेम सम्बंधो मे, विलास, वैभव, मकान, वाहन, सुख समृधि दायक वस्तुये में विशेष लाभदायक है, पुरुषों के विवाह, संतान के योग बनता है | विद्यार्थियों को इसे धारण नहीं करना चाहिए | 


नीलम : यह रत्न शनि का होता है | इसे धारण करने से व्यक्ति न्याय प्रिय होता है, कोर्ट मुकदमे में लाभ देता है | रिसर्च वर्क करने वालोंको विशेष लाभ दायक, गरीबोंके प्रति स्नेह भाव उत्पन करता है | पैरो, जोड़ के दर्द, होने पर यह लाभ दायक होता है. |


गोमेद : यह रत्न राहू का होता है | इसे धारण करने से जादू टोना, पिच्श्य बाधा , गुप्त रहस्यो का ज्ञान में लाभ दायक होता है, राजनीती में विशेष लाभ देता है पेट सम्बंधित विकारो में लाभ देता है | 


केतु : यह रत्न केतु का है | इसे धारण करने से धर्मं कर्म में रूचि, मोक्ष प्राप्ति में सहायक होता है |


नोट : रत्न पहने से पहले अपनी कुंडली नुसार ज्योतिष सलाह से रत्न धारण करना लाभ दायक होता है | अन्यता नुकसान हो सकता है इस का विशेष ध्यान रखे |

Tuesday, February 24, 2015

वास्तु दिशाए स्वामी ग्रह


दिशा
स्वामी ग्रह
देवता
पूर्व
सूर्य
इन्द्र
पश्चिम
शनि
वरुण
उत्तर
बुध
कुबेर
दक्षिण
मंगल
यम

उत्तर-पूर्व (ईशान)

गुरु
शिव
उत्तर-पश्चिम (वायव्य)
चन्द्र
वायु देवता
दक्षिण-पूर्व (आग्नेय )
शुक्र
अग्नि देवता
दक्षिण -पश्चिम (नेत्रत्य)
राहु-केतु
नेत्रत्य

वास्तु परिचय

           वास्तु एक विज्ञान है , हिन्दू ज्योतिष में वास्तु का बहुत महत्व बताया गया है। ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से मानव जीवन और पर्यावरण में पंचतत्व का महत्व बताया गया है ये पांच तत्व जीवन के लिए अति आवश्यक है , इन्ही के संतुलन से जीवन , पृथ्वी , एवं सभी कुछ जीवंत है |

  1. पृथ्वी 
  2. जल 
  3. अग्नि 
  4. वायु
  5. आकाश